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मैनपुरी-भाई के त्याग से सीईओ की कुर्सी तक का सफर

by morning on | 2025-05-24 16:46:09

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मैनपुरी-भाई के त्याग से सीईओ की कुर्सी तक का सफर

फोटो परिचय-  सीईओ रण विजय प्रताप सिंह।

Morning City


में चाहे अनपढ़ रहूं भाई को बड़ी कुर्सी तक पहुंचाऊंगा, आखिर क्यों दरक रहे भाई- भाई के रिश्ते


मैनपुरी। हम चाहे अनपढ़ रहे, होली के त्योहार पर नए कपड़े भले ही ना मिले। भरपेट रोटी भले ही ना मिले, पानी पीकर पेट भर लेंगे। दिन और रात मेहनत- मजदूरी करेंगे। मगर अपने भाई को ऊंची कुर्सी पर बिठाकर रहेंगे। यह किसी फिल्म के डायलॉग नहीं है। यह छोटे भाई का बड़े भाई के प्रति योगदान है। इसी समर्पण और त्याग से गरीब घर में जन्मा युवक आज मैथ्यूज अंपायर में सीईओ के पद पर हासिल हुआ है।
भाई- भाई दिवस यानी अलग-अलग नामो से प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले दिवसों की भीड़ में खोया एक और दिवस। भाई भाई के प्रति प्यार और समर्पण का प्रतीक भाई दिवस के मायने लोगों को पता तक नहीं है। भाई भाई के बीच दरकते रिश्तों पर आत्म मंथन करने का दिन है। भागम भाग जिंदगी में कहीं जमीन के छोटे से टुकड़े को लेकर भाइयों के बीच खूनी संघर्ष खेला जा रहा है। बदलते हुए हालात इसकी स्वयं मूक गवाई देने के लिए पर्याप्त हैं। किस प्रकार से कुंभकार कच्चे घड़े में अंदर से चोट पहुंचाते हुए खड़े को सुंदर बनाता है। उसी प्रकार मां-बाप अपने बच्चों में अच्छे संस्कार डालकर गुणवान बनने का प्रयास करते हैं। मगर आधुनिकता की चकाचौंध और पाश्चात्य सभ्यता ने हमारी सनातन परंपरा में जहर घोला है। शायद यही वजह है कि आज भाई-भाई की जान का दुश्मन बना हुआ है। आईए आज हम आपके वहां ले चलते हैं, जहां कीचड़ में कमल खिला है।

मैथ्यूज अंपायर के सीईओ कराते हैं रूबरू

विकासखंड सुल्तानगंज क्षेत्र के काली नदी के इलाका। यह क्षेत्र बीहडी़ इलाका के नाम से जाना जाता है। काली नदी के किनारे बसे दर्जनों गांव आज भी अशिक्षित हैं। ग्राम लहरा में गरीब परिवार में कलमकार श्रीकृष्ण शाक्य के घर जन्मे जो आज मैथ्यूज अंपायर के सीईओ हैं से रूबरू करते हैं। आज भाई- भाई दिवस पर सीईओ रणविजय प्रताप सिंह बताते हैं कि आज में जो कुछ हूं छोटे भाई महेंद्र विक्रम प्रताप सिंह की वजह से हूं। परिवार गरीब था, दो वक्त की रोटी भी जुटाना भी बहुत बड़ी बात थी। मेरे पापा भले ही जर्नलिस्ट थे मगर पत्रकारिता से घर चलाना बहुत मुश्किल था। गांव से शहर तक की शिक्षा, फिर दिल्ली के मुखर्जी नगर का खर्चा। परिवार का चौन और रात की नींद गायब कर रहती थी। परिवार की कमाई से हम दो भाइयों में एक ही अच्छे स्कूल में पढ़ सकता था। छोटे भाई ने मुझ पर विश्वास जताया। आज हम जो कुछ भी हैं उसी के त्याग और बलिदान से हैं।

मिलिट्री स्कूल और जेएनयू को ठुकराया
मैथ्यूज अंपायर के सीईओ रणविजय प्रताप सिंह बताते हैं कि जब वह शहर में एक अच्छे विद्यालय में शिक्षा रहे थे तब उनका चयन मिलिट्री स्कूल में हुआ था। उसके बाद जेएनयू में सिलेक्शन हुआ। मगर मेरे भाई का योगदान मेरी आत्मा को झकझोर रही थी। भाई का त्याग और बलिदान मुझे सोने नहीं देता था। आज भाई के त्याग और बलिदान से हम मैथ्यूज अंपायर में सीईओ के पद पर है।

कीचड़ में खिला कमल
भूमिहीन गरीब परिवार में ग्राम लहरा निवासी कलमकार श्रीकृष्ण के घर जन्मे उनके बड़े बेटे ने आज गांव का ही नहीं जिले का नाम रोशन कर दिया है। उनके छोटे बेटे महेंद्र विक्रम प्रताप सिंह का त्याग और बलिदान रंग लाया। उनके बड़े बेटे रण विजय प्रताप सिंह की लगन और मेहनत भी सफल हो गई। आज वह मैथ्यूज अंपायर में सीआई के पद पर आसीन हैं।




फोटो परिचय- छोटा भाई महेंद्र विक्रम प्रताप सिंह।

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