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आगरा-पनवारी कांड में 35 साल बाद आया इंसाफ, दोषियों को 5 साल की कैद

by morning on | 2025-05-30 17:16:50

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आगरा-पनवारी कांड में 35 साल बाद आया इंसाफ, दोषियों को 5 साल की कैद

Morning City

दलित बस्ती पर हमले के बहुचर्चित मामले में एससी/एसटी कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, पीड़ित परिवारों ने जताया संतोष, दोषियों के परिजन हाईकोर्ट जाएंगे

आगरा। 1990 में हुई एक हिंसक घटना, जिसने ताजनगरी समेत कई जिलों को हिला दिया था, आखिरकार 35 साल बाद अपने अंजाम तक पहुंची। आगरा की विशेष एससी/एसटी कोर्ट ने शुक्रवार को पनवारी कांड के 35 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए पांच-पांच साल की कैद और 26-26 हजार रुपये के आर्थिक दंड की सजा सुनाई। जातीय हिंसा की इस घटना में दलित बस्ती पर हथियारबंद हमला, आगजनी, लूटपाट और मारपीट की गई थी। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक न्याय की दृष्टि से भी मील का पत्थर माना जा रहा है।

दलित बारात चढ़ाने से भड़का था विवाद

घटना की शुरुआत 21 जून 1990 को हुई थी, जब पनवारी गांव निवासी भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की शादी में बारात आगरा के ग्वालियर रोड स्थित पदमा नगला से आई थी। परंपरागत तरीके से दलित समाज के लोग बारात चढ़ाना चाहते थे, लेकिन गांव के जाट समुदाय के दबंगों ने इसका विरोध किया। कहासुनी के बाद स्थिति इतनी बिगड़ गई कि दोनों पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई, और देखते ही देखते पूरा इलाका जातीय हिंसा की चपेट में आ गया।

बस्ती पर हमला, घरों में आग, लूटपाट और मारपीट

इस घटना के तीन दिन बाद, 24 जून को थाना अकोला क्षेत्र के गांव ऊदर की दलित बस्ती पर जाट समुदाय के लोगों ने हमला कर दिया। चश्मदीद पीड़ित राजकुमार, जो अब धनौली में रहते हैं, बताते हैं, “दोपहर का वक्त था। लोग अपने घरों में टीवी देख रहे थे। अचानक गांव में चारों ओर से लोगों ने हमला बोल दिया। घरों को आग के हवाले कर दिया गया। जो मिला, उसके साथ बेरहमी से मारपीट की गई। लूटपाट के बाद पूरा मोहल्ला वीरान हो गया। हम जान बचाकर खेतों और जंगलों में भागे थे।”

थाने में दर्ज हुआ मुकदमा, 78 के खिलाफ आरोपपत्र

घटना के बाद तत्कालीन कागारौल थानाध्यक्ष ओमवीर सिंह ने केस दर्ज कराया। पुलिस ने जांच के बाद कुल 78 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। लेकिन मुकदमे की लंबी कानूनी प्रक्रिया के दौरान इनमें से 27 अभियुक्तों की मृत्यु हो चुकी थी, एक को किशोर मानते हुए पहले ही बाल न्यायालय भेजा गया, जबकि 15 आरोपियों को कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। शेष 35 अभियुक्तों को कोर्ट ने दोषी माना।

विशेष न्यायाधीश पुष्कर उपाध्याय ने सुनाया फैसला

विशेष एससी/एसटी न्यायाधीश पुष्कर उपाध्याय ने 28 मई को दोषियों की सजा तय की और 30 मई को सजा का एलान किया। शुक्रवार सुबह कोर्ट खुलते ही इन 35 दोषियों को पांच साल की कैद और 26-26 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई। कोर्ट परिसर में पहले से ही पुलिस और पीएसी की तैनाती थी। दीवानी कचहरी में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे। कोर्ट के भीतर किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी।

कोर्ट परिसर में जुटी भीड़, सुरक्षा चाक-चौबंद

सुनवाई के दिन दीवानी परिसर में जाट समुदाय के लोगों की भारी भीड़ जमा हो गई थी। फैसले के बाद पुलिस ने सभी को कोर्ट परिसर से बाहर कर दिया। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर मौजूद रहे। सजा सुनते ही कई अभियुक्तों के परिजन रो पड़े। कुछ बुजुर्ग अभियुक्तों को अब उम्र के इस पड़ाव में जेल जाना पड़ेगा, जिससे उनके परिजन बेहद व्यथित दिखे।

दोषियों के परिजन बोले- फैसला एकतरफा, करेंगे अपील

सजा के बाद दोषियों के परिजनों ने कोर्ट के निर्णय को एकतरफा बताया। एक अभियुक्त के भाई ने कहा, “कोई ठोस गवाह नहीं था, न ही पुख्ता सबूत। सिर्फ अनुमान के आधार पर फैसला सुनाया गया है। हम इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगे।”

पीड़ितों ने फैसले को बताया न्याय की जीत

वहीं दूसरी ओर, पीड़ित दलित परिवारों ने इस फैसले को न्याय की जीत बताया। राजकुमार ने कहा, “हमने 35 साल इंतजार किया। कई लोग न्याय की उम्मीद में दुनिया छोड़ चुके हैं। आज यह फैसला उनके लिए भी श्रद्धांजलि है। देर से ही सही, हमें विश्वास है कि कानून अंधा नहीं है।” पनवारी कांड केवल एक बारात को चढ़ाने से शुरू हुई जातीय असहिष्णुता की भयंकर परिणति थी। न्याय की इस प्रक्रिया ने एक बार फिर साबित किया है कि लोकतंत्र में कानून का राज सर्वोपरि है और समय चाहे जितना भी लगे, न्याय जरूर होता है।

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