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Agra News:"डिजिटल दुनिया में घुटता इंसान: अकेलेपन में डूबे लोग, आत्महत्या तक जा पहुंची ज़िंदगी"

by morning on | 2025-07-28 16:31:46

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Agra News:"डिजिटल दुनिया में घुटता इंसान: अकेलेपन में डूबे लोग, आत्महत्या तक जा पहुंची ज़िंदगी"



संवादहीनता, भावनात्मक शून्यता और अकेलापन बन रहे हैं आत्महत्या की वजह, मानसिक स्वास्थ्य पर गहराता संकट


क्या किया जा सकता है?

दिन में कम से कम एक वक्त परिवार के सभी सदस्य साथ बैठें।
बच्चों को बुजुर्गों के साथ समय बिताने के लिए प्रोत्साहित करें।
सोशल मीडिया पर नहीं, असल जिंदगी में रिश्तों को मजबूत करें।
दिक्कत होने पर चुप न रहें, मदद मांगना कमजोरी नहीं
स्कूल-कॉलेज और ऑफिस में काउंसलिंग की सुविधाएं बढ़ें।

Morning City

आगराजिस रफ्तार से समाज तकनीकी प्रगति कर रहा है, उतनी ही तेज़ी से इंसान भावनात्मक रूप से कमजोर और अकेला होता जा रहा है। पहले जहां लोग साथ बैठकर दुख-सुख साझा करते थे, आज वहां लोग एक कमरे में रहते हुए भी एक-दूसरे से पूरी तरह कटे हुए हैं। मोबाइल, सोशल मीडिया और व्यस्त जीवनशैली ने इंसान को ‘कनेक्टेड’ तो किया, मगर ‘जुड़ा’ नहीं रखा। यही असल कारण बनता जा रहा है आत्महत्या जैसी गंभीर प्रवृत्तियों का। बीते कुछ वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि आत्महत्या के मामलों में तेजी से इज़ाफा हुआ है। खासकर शहरी युवाओं और बुजुर्गों में अकेलेपन की वजह से मानसिक अवसाद और निराशा गहराती जा रही है। यह एक सामाजिक और पारिवारिक संकट का संकेत है, जिसे नजरअंदाज करना भविष्य के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है।

पहले थे रिश्ते, अब हैं डिवाइसेज़
समाजशास्त्री और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ इस बात को लेकर लगातार चिंता जता रहे हैं कि आज का इंसान ‘डिजिटल रूप से एक्टिव’ तो है, लेकिन 'भावनात्मक रूप से निष्क्रिय' होता जा रहा है। पहले जब घर में कोई समस्या आती थी, तो दादी-नानी या पिता-चाचा के पास बैठकर सलाह ली जाती थी। अब समस्याएं गूगल पर सर्च की जाती हैं और सॉल्यूशन यूट्यूब से लिया जाता है। बुजुर्गों की भूमिका अब सीमित होकर कोने के एक कमरे तक रह गई है। बच्चे मोबाइल में व्यस्त हैं, युवा अपने करियर की दौड़ में उलझे हैं और महिलाएं भी घरेलू ज़िम्मेदारियों के बीच अकेलेपन की शिकार हो रही हैं।

ऑनलाइन तो हैं, मगर अकेले
सोशल मीडिया पर हजारों फॉलोअर्स और फ्रेंड्स होने के बावजूद दिल की बात कहने वाला कोई नहीं। यही वह ‘अदृश्य खालीपन’ है जो लोगों को भीतर से तोड़ रहा है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो हर आत्महत्या का पीछे कोई बड़ा कारण नहीं होता। कई बार यह भावनात्मक थकान, सुने न जाने का दर्द और निरंतर अकेलेपन की वजह से होता है।

बुजुर्ग उपेक्षित, युवा अवसादग्रस्त
आगरा में बीते दिनों कई ऐसे मामले सामने आए हैं जहां बुजुर्गों ने अकेलेपन के कारण आत्महत्या की। एक मामले में 72 वर्षीय बुजुर्ग ने इसलिए जान दे दी क्योंकि महीनों से उनसे कोई बात करने नहीं आया। वहीं एक इंजीनियरिंग छात्र ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि परीक्षा के तनाव में वह किसी से मन की बात नहीं कह पाया।

समस्या सिर्फ मानसिक नहीं, सामाजिक भी
साइकोलॉजिस्ट डॉ. कहती हैं, “आत्महत्या अब सिर्फ एक मानसिक बीमारी का परिणाम नहीं है, यह सामाजिक विफलता भी है। जब एक व्यक्ति को लगता है कि वह अपनी बात किसी से नहीं कह सकता, या उसकी कोई परवाह नहीं करता – वही पल सबसे घातक होता है।”

समाज को फिर से जोड़ने की जरूरत
अब समय आ गया है कि समाज फिर से संवाद की संस्कृति की ओर लौटे। परिवार के सदस्य साथ बैठें, बुजुर्गों को समय दें, और बच्चों से खुले मन से बात करें। वर्चुअल ‘स्टेटस’ से कहीं ज्यादा जरूरी है असल जिंदगी में किसी की स्थिति को समझना और उसका साथ देना।

सबसे बड़ा सवाल:
जब कोई पास बैठने वाला नहीं होता, तो अकेलापन मौत से भी बड़ा डर बन जाता है। क्या हम किसी के अकेलेपन को उसकी अंतिम यात्रा में बदलने से पहले उसे समय, संवाद और सहारा दे पाएंगे?

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